मृत्यु अटल है, यह एक दिन सभी को आनी है। यह बात हम सब जानते हैं, फिर भी दुःखी होते हैं किसी भी व्यक्ति के जाने के बाद, और अगर वह व्यक्ति कोई अपना है तो हम सिर्फ़ दुःखी ही नहीं होते बल्कि पूर्णतया टूट जाते हैं।
अपने किसी प्रिय को मृत अवस्था में देखकर आप अचंभित होते हैं। उस क्षण, आप यह स्वीकार नहीं कर पाते हैं कि आप का वह प्रियजन वास्तव में इस दुनिया से चला गया है। उस समय आपका हृदय कुछ भी सुनना और समझना नहीं चाहता। एक विचित्र सी पीड़ा तुरंत ही आपके हृदय में होती है, और उसी समय सदैव के लिए आपके जीवन और हृदय में एक बड़ा सा, कभी ना भरने वाला एक गहरा रिक्त स्थान बन जाता है। उस रिक्त स्थान की गहराई उस जाने वाले व्यक्ति से आपके संबंध पर निर्भर करता है। जितना अधिक प्रेम आप उस व्यक्ति से करते थे, उतनी ही गहरी चोट आपके हृदय पर लगती है और उतना ही गहरा घाव उस रिक्त स्थान में बन जाता है।
परिवार के कुछ सदस्य लगातार रो-रो कर उसके वापस जीवित होने की गुहार लगाते हैं। वहीं, कुछ सदस्य शांत होकर उस मृत शरीर को देखते हैं। उस समय किसी को इस घटना की गहराई समझ में नहीं आती। उन्हें इस गंभीरता का आभास नहीं होता की जो व्यक्ति अभी कुछ समय पहले तक सांस ले रहा था, बात कर रहा था, मुस्कुरा रहा था, अब वो कुछ नहीं बोल पाएगा। ऐसी अवस्था में इस बात को स्वीकार करने में समय लगता है कि आपका वह प्रिय व्यक्ति अब नहीं रहा। समय लगता है।
कई घंटे बीतने के बाद परिवार को समझ में आता है कि अब इस प्रिय के पार्थिव शरीर को अंत स्थल पर ले जाना है और अंतिम संस्कार पूर्ण करना है। समय बीतने पर, परिवार के वही टूटे हुए सदस्य हिम्मत करके उस पार्थिव शरीर को श्मशान पहुँचाने की व्यवस्था करते हैं, और अंतिम संस्कार की रस्मों को निभाते हैं।
उस परिजन का वियोग यहीं समाप्त नहीं होता है। पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार करने के बाद भी परिवार के सदस्यों को उस प्रियजन के जाने के बाद की कई सारी रस्मों को, लगातार कई दिनों तक निभाना पड़ता है। हृदय पर पत्थर रखकर, इन रस्मों को वह इसलिए पूरा करते हैं ताकि उस प्रिय की आत्मा को शांति प्राप्त हो।
इन संस्कारों को निभाते हुए परिवार के सदस्य कई चरणों को पार करते हैं। पहले तो उन्हें विश्वास ही नहीं होता कि वह व्यक्ति जा चुका है, फिर परिवार के सदस्य आत्मग्लानि से भर जाते है। उन्हें खुद पर या दूसरों पर क्रोध आता है, फिर वो दूसरों या खुद को दोष देते हैं, और अंततः हार कर उस मृत्यु को स्वीकार कर लेते हैं।
कई दिनों तक आपको एक शून्यता का आभास होता रहता है, और एक उलझन आपको निरंतर परेशान करती है। आप उस रिक्त स्थान को भरने के लिए स्वयं को इतना व्यस्त कर लेते हैं कि उसके जाने की पीड़ा क्रमशः कम होने लगती है। हालांकि वह रिक्त स्थान कभी भर नहीं पाता, परंतु आपके प्रयास की गति कभी कम नहीं होती।
(ओम् शान्ति)
Very true